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शंकरदयाल सिंह एक संत साहित्यकार, राजनेता, प्रखर राष्ट्रवादी एवं प्रतिभाशाली थे : उपराज्यपाल जम्मू कश्मीर

Vijay Gaur Bureau Chief - Delhi

साहित्यकार, दार्शनिक, राजनेता एवं सांसद रहे स्वर्गीय डॉ. शंकरदयाल सिंह की जन्मजयंती के मौके पर  
शंकर संस्कृति प्रतिष्ठान के तत्त्वाधान में डॉ० शंकर दयाल सिंह व्याख्यान माला कार्यक्रम का भव्य समारोह  सभागार  एनडीएमसी कन्वेन्शन  सेंटर मैं  आयोजित किया गया  व्याख्यान का विषय था “हमारी जरूरतें और चाहतें”

इस कार्यक्रम का सफल आयोजन डॉक्टर शंकर दयाल सिंह की सुपुत्री  डॉ० रश्मि सिंह आईएएस प्रिन्सिपल रेज़िडेंट कमिशनर एवं सेक्रेटेरी उच्च एजुकेशंज़  जम्मू कश्मीर ने किया और कार्यक्रम की  अध्यक्षता रंजन कुमार सिंह ने 
की । 

इस अवसर  अपने सम्बोधन में  मुख्य अतिथि जम्मू कश्मीर 
 के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आज कहा किभारत कभी अतिवाद की गिरफ्त में नहीं रहा है और यहां आध्यात्मिक ज्ञान से भौतिक इच्छाओं एवं आकांक्षाओं पर संतुलन साधा गया है और यहीं से विश्व को सम्यक जीवन जीते हुए ऐश्वर्य एवं समृद्धि के लिए सन्मार्ग पर चलने के दर्शन का उपहार मिला है।

श्री सिन्हा ने स्वर्गीय शंकरदयाल सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह एक संत साहित्यकार, राजनेता, प्रखर राष्ट्रवादी और ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे जिनमें देश के प्राचीन गौरव को पुन: हासिल करने की आकांक्षा थी और उन्हें सृष्टि के प्रति अपने कर्त्तव्य का बोध था और उनका मानना था कि यदि इस कर्त्तव्य के प्रति हमारी सभ्यता में यह बोध ना होता तो भारत की सभ्यता इतनी विकसित कभी नहीं होती और ना ही तमाम विरोधाभासों एवं टकरावों के बावजूद जीवंत होती। उन्होंने कहा कि भारत एक समय ज्ञान एवं उद्योग दोनों का बड़ा केन्द्र था। अन्य देशों से लोग केवल व्यापार के लिए नहीं बल्कि शिक्षा एवं अध्यात्म के लिए भी आते थे। ऐश्वर्य एवं समृद्धि के लिए सन्मार्ग पर चलें, ऐसा भारत की भूमि ने ही सिखाया है। हमारे वैज्ञानिक आध्यात्मिक चिंतन के साथ ऋषि ही थे। उनके अंतरतम में भौतिकता नहीं थी। भारत ने दुनिया को सम्यक जीवन का बहुत बड़ा उपहार दिया है।

उपराज्यपाल ने कहा कि भारत कभी भी अतिवाद की गिरफ्त में नहीं रहा है। भारत ने संतुलित जीवन की राह दिखायी है। सन्यास की अति और ऐश्वर्य की अति, दोनों ही बुरी हैं। इनका मध्य मार्ग में ही जीवन का सुख और आनंद है। आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के बीच की जद्दोजेहद में हमारी परंपराओं एवं संस्कारों का प्रभाव बना रहा। इसी से सतत विकास एवं टिकाऊ जीवनशैली के सिद्धांत बने हैं। यह वो थाती है जिसे हमने अपने पूर्वजों से पाया है। अशांति के इस युग में हमारे महान पूर्वजों की शिक्षाएं हमें मार्ग दिखा रहीं हैं। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भारत ही नहीं अपितु वैश्विक समाज में अशांति एवं असंतोष के कारणों का उल्लेख किया और कहा कि यह युग कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का है लेकिन हमें आरआई यानी ऋषि बुद्धिमत्ता की ओर जाना होगा। उन्होंने इंटरनेट एवं मोबाइल काे सामाजिक ताने बाने एवं पारिवारिक संबंधों का सबसे बड़ा शत्रु बताते हुए कहा कि पहले लोगों को सोमवार मंगलवार गुरुवार आदि के व्रत रखने के लिए कहा जाता है और आज हमें मोबाइल व्रत धारण करने की जरूरत है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में 18 साल से कम आयु के लोगों और फ्रांस में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए मोबाइल के उपयोग पर रोक लगाये जाने का उल्लेख किया और कहा कि बच्चों को फेसबुक की बजाय उनके फेस पर बुक्स लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अध्ययन, चिंतन, मनन की आदत मोबाइल इंटरनेट के कारण समाप्त हो रही है। लोग हो सकता है कि बहुत पैसा कमा लें लेकिन उनकी आत्मा एवं अंतरतम खाली और खोखला ही रह जाएगा। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि लोगों की चाहतें बढ़तीं जा रहीं हैं और चैन खोता जा रहा है। परिवारों में अहंकार की बाधाएं खड़ी हो रहीं हैं। पैसा बहुत हुआ लेकिन भीतर की शांति नहीं है तो क्या हुआ। उन्होंने कहा कि भारत में उसी को जीवित कहा गया है जिसकी कीर्ति जीवित है। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों को अध्यात्म से उन्हीं की भाषा में जोड़ना होगा। सतत विकास अध्यात्म के बिना नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत किसी तलवार की ताकत पर नहीं खड़ा है। यह ऋषि बुद्धिमत्ता यानी आरआई के कारण संस्कृति एवं संस्कार की ताकत पर खड़ा है। हमारे बच्चों को समझाना होगा -‘लिविंग विद लेस एंड बी मोर’ तथा ‘नॉट फॉर मी, बट थ्रू मी’। 

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने प्रेरक उद्बोधन प्रदान किया। 

कार्यक्रम की संयोजिका एवं डॉक्टर रश्मि सिंह  आईएएस ने ब्यूरो चीफ़ विजय गौड़ को बताया कि  शंकर दयाल सिंह लोकसभा व राज्यसभा दोनों के सदस्य रहे चूँकि मूलतः वेएक साहित्यकार थे  शंकर दयाल सिंह विभिन्न देशों व स्थानों की यात्रा लेखों के माध्यम से अपनेपाठको को भी उन स्थानों का परिचय लगातार करते रहे।  सोवियत संघ की राजधानी मास्को से लेकर सूरीनाम और त्रिनिदाद तक की महत्वपूर्ण यात्राओंके वृतांत पढ़कर हमे यह लगता ही नहीं कि  शंकर दयाल सिंह हमारे बीच नहींहै।
राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए शंकर दयाल सिंह ने आजीवन संघर्ष किया , उन्हें सन1993  में हिंदी सेवा के लिए अनन्तगोपाल सेवडे हिंदी सम्मान तथा सन1995 में गाडगिल राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया।  इसके अतिरिक्त उनकोभारतवर्ष से कई संस्थाओं, संगठनों व राज्य - सरकारों से अनेको पुरस्कारप्राप्त हुए। शंकर दयाल सिंह जी की स्मृति में जनभाषा सम्मान दिया जाताहै।  इसके अंतगर्त Rs1 लाख का पुरस्कार विभिन्न संस्थाओं / व्यक्तियों कोअबतक दिया जा चूका है।  इसी क्रम में अब बनारस हिन्दू विश्वविधालय(BHU ) में डॉ शंकर दयाल सिंह जी के नाम पर एक फ़ेलोशिप आरम्भकिया गया है।बिहार सरकार ने शंकर दयाल सिंह के गृह स्थान देव, जिला औरंगाबाद(बिहार) की एक महत्वपूर्ण सड़क का नामकरण उनकी स्मृति में किया है। राष्ट्रीय उच्च पथ -2 पर स्तिथ देव मोड़ से शुरू होकर भवानीपुर गावं तक कीसड़क डॉ शंकर दयाल सिंह पथ के नाम से जानी जाती है।  यही सड़क आगेदेव स्थित सूर्य मंदिर तक चली जाती है, जहा वर्ष में दो बार छठ के अवसरपर बड़ा मेला लगता है।  भवानीपुर गावँ जो की देव ब्लॉक स्थित है शंकरदयाल सिंह जी का जन्म स्थान है।  यही उनका बचपन बीता। भारत सरकारके भारी उद्योग एवं लोक उपक्रम मंत्रालय ने देश भर के लोक उपक्रमों मेंराजभाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए शंकर दयाल सिंह राजभाषापुरस्कार भी दिया जा रहा है।  ज्ञातव्य है की शंकर दयाल सिंह जी संसदीयराजभाषा समिति की तीसरी उपसमिति के संयोजक और फिर संसदीयराजभाषा समिति के उपाध्यक्ष के तौर पर इन संस्थाओं में राजभाषा के प्रयोगको लेकर बेहद प्रयत्नशील रहे थे।  यह पुरस्कार हरेक वर्ष हिंदी दिवस परराजभाषा के क्षेत्र में श्रेष्ठतम योगदान के लिए किसी लोक उपक्रम को दिया जाता  है। 

 इस मौके पर दिवंगत राजनेता के कृतित्व पर एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया।

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