स्वास्थ्य मंत्रालय पर चिकित्सा उपकरण नीति के उल्लंघन का आरोप।
महेश ढौंडियाल - दिल्ली।
- उद्योग जगत के लीडर्स ने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया कि नवीकृत चिकित्सा
उपकरणों के आयात को अनुमति देने के मुद्दे पर हस्तक्षेप करें।
- स्वदेशी निर्माताओं ने मंत्रालय के अधिकारियों भ्रमित की नीतियों पर चिंता जताई,
जो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्म निर्भर भारत’ दृष्टिकोण के लिए बड़ा खतरा हैं।
- पहले से इस्तेमाल की चुकी और नवीकृत चिकित्सा डिवाइसेज़ मरीज़ों की सुरक्षा के
साथ समझौता हैं, क्योंकि आउटडेटेड टेक्नोलॉजी वाली ये डिवाइसेज़ भरोसेमंद
नहीं होती और इनमें वारंटी भी कम होती है।
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर, 2024: पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री (PHDCCI) और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइसेज़ (AiMed)ने मैनुफैक्चरर्स ऑफ इमेजिंग, थेरेपी एण्ड रेडियोलोजी डिवाइसेज़ एसोसिएशन (MITRA), एसोसिएशन ऑफ डायग्नॉस्टिक मैनुफैक्चरर्स ऑफ इंडिया (ADMI) तथा मेडटेक उद्योग के हितधारकों के सहयोग से पीएचडी हाउस में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया। जहां पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक (DGHS) तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा हाल ही में जारी कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में गंभीर विषयों पर चर्चा की गई। ये ज्ञापन नवीकृत एवं पहले से इस्तेमाल किए जा चुके चिकित्सा उपकरणों के आयात की अनुमति देते हैं, बावजूद इसके कि इसी तरह की डिवाइसेज़ का निर्माण भारत में किया जाता है। उद्योग जगत के लीडरों का मानना है कि यह भारत को चिकित्सा उपकरण निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा खतरा है, साथ ही यह प्रधानमंत्री जी के ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों में बाधा भी उत्पन्न करता है। यह देश की स्वदेशी निर्माण क्षमता में रूकावट उत्पन्न करता है। इसके अलावा मरीज़ों की सुरक्षा के संबंध में भी गंभीर मुद्दों की संभावना उठाई गई है, क्योंकि हो सकता है कि नवीकृत किए गए चिकित्सा उपकरण, नव निर्मित उपकरणों की तरह गुणवत्ता के मानकों पर खरे न उतरें, जो मरीज़ों की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का कारण हो सकता है।
उद्योग जगत के दिग्गजों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह ज्ञापन स्वदेशी मेडटेक सेक्टर को कमज़ोर बनाता है, जो हाल ही के वर्षों में ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत निवेश के चलते तेज़ी से विकसित हुआ है। भारत द्वारा उच्च गुणवत्ता की मेडिकल डिवाइसेज़ बनाने की क्षमता के बावजूद नवीकृत डिवाइसेज़ के आयात की अनुमति देना, घरेलू सेक्टर की प्रगति में बड़ी बाधा बन सकती है। पहले से इस्तेमाल की जा चुकी और नवीकृत मेडिकल डिवाइसेज़ के आयात को बढ़ावा देकर यह पॉलिसी भारतीय उद्यमियों के लिए इनोवेशन और निवेश में बाधा उत्पन्न करती है, तथा भारत के प्रतिस्पर्धी मेडकटेक उद्योग के विकास में रूकावट है।
इसके अलावा यह पॉलिसी मरीज़ों की देखभाल की गुणवत्ता और सुरक्षा के परिणामों पर भी सवाल उठाती है, क्योंकि हो सकता है कि नवीकृत डिवाइसेज़, सुरक्षा के मानकों की दृष्टि से नई डिवाइसेज़ के समकक्ष न हों। इससे मरीज़ों के स्वास्थ्य और कल्याण के साथ समझौता होगा। नवीकृत डिवाइसेज़ के आयात पर निर्भरता न सिर्फ उद्योग जगत बल्कि स्टार्ट-अप्स एवं एमएसएमई के लिए भी खतरा है, इसके चलते मैनुफैक्चरिंग युनिट्स बंद होने की कगार पर आ सकती हैं।
भारत को ग्लोबल मेडटेक सेक्टर का लीडर बनाने तथा इनोवेशन एवं निर्यात को बढ़ावा देने का सरकार का दृष्टिकोण, लाईफ साइंसेज़ एवं फार्मास्युटिकल उद्योगों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। विभिन्न मंत्रालयों के प्रयासों का उद्देश्य भारत को मेडिकल डिवाइसेज़ के विश्वस्तरीय गंतव्य के रूप में स्थापित करना तथा समय के साथ आयात पर निर्भरता कम करना है। हालांकि 2023 और 2024 में सरकार द्वारा दिए गए ऑर्डर पहले से इस्तेमाल की गई नवीकृत डिवाइसेज़ के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं, बावजूद इसके कि इन उत्पादों का निर्माण भारत में किया जाता है। ऐसे में यह प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण को साकार करने में बड़ी रूकावट हो सकती है।
इसके अलावा उद्योग जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योग जगत ने इंटरनेशनल गुणवत्ता के मानकों को पूरा करने के लिए डिवाइसेज़ विकसित की हैं, जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों में किया जाता है। ऐसे में स्थानीय रूप से निर्मित नए उत्पादों के बजाए नवीकृत मेडिकल डिवाइसेज़ के आयात की अनुमति देना तर्कहीन प्रतीत होता है। पिछले दस सालों में भारत ने स्थानीय सामग्री के विकास में महत्वपूर्ण विकास किया है और कई महत्वपूर्ण, आधुनिक एवं उच्च मूल्य की मेडिकल डिवाइसेज़ के लिए निर्यात उन्मुख बन गया है।
मरम्मत एवं कॉस्मेटिक अपडेट्स की गई नवीकृत डिवाइसेज़ किसी भी तरह नए उपकरण के समकक्ष नहीं हो सकतीं, फिर चाहे इनकी व्यवहारिकता हो या विश्वसनीयता। नई मेडिकल डिवाइस हमेशा बेहतर परफोर्मेन्स देती है, और लगभग 10 साल तक चलती है। वहीं पहले से इस्तेमाल की जा चुकी नवीकृत डिवाइस की फंक्शनेलिटी बहुत अच्छी नहीं होती है। इसके अलावा इस तरह की डिवाइसेज़ आधुनिक तकनीक पर आधारित नहीं होतीं, ये कम वारंटी के साथ आती हैं, इसके साथ उपयुक्त सर्विस सपोर्ट नहीं मिलता, ऐसे में इनकी फेलियर रेट ज़्यादा होती है। इन सब पहलुओं का असर उपचार की गुणवत्ता और सर्जरी के परिणामों पर पड़ सकता है।
स्वदेशी कंपनियां जिनके इसी तरह के उत्पाद 2023 कार्यालय ज्ञापन में सूचीबद्ध हैं, ने सीधे या सगठनों के माध्यम से MOHFW, DOP, MOEFCC, DGHS के समक्ष अपने निवेश, निर्माण क्षमता, रोज़गार सृजन क्षमता का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। यह हैरानी की बात है कि अक्टूबर 2024 में DGHS और MOEFCC से मिले नए ऑर्डर में परिणामों पर विचार किए बिना ऐसे प्रोडक्ट्स के लिए अनुमति दी गई है। इसके अलावा अनिवार्य प्रावधान ‘भारत में निर्मित उपकरणों को आयात की अनुति नहीं मिलनी चाहिए’ को भी हटा दिया गया है।
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री ने चेतावनी दी है कि नवीकृत की गई आयातित डिवाइसेज़ पर अक्सर गलत लेबलिंग लगाई जाती है, जो मरीज़ की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। भारत में नवीकरण के स्पष्ट निर्देश न होने से बेईमान व्यापारियों को बिना किसी निगरानी के घटिया उपकरण आयात करने की अनुमति मिल जाती है।
इस अवसर पर निराशा व्यक्त करते हुए श्री राजीव नाथ, फोरम कोऑर्डिनेटर, ने स्थानीय निर्माण पर इस ज्ञापन के घातक प्रभाव की बात करते हुए कहा, ‘‘ डवम्थ्ब्ब् द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन नेशनल मेडिकल डिवाइसेज़ पॉलिसी 2023 का उल्लंघन करता है, जिसका लॉन्च पिछले साल माननीय प्रधानमंत्री जी ने किया था। यह ज्ञापन पहले से इस्तेमाल की जा चुकी मेडिकल डिवाइसेज़ को आयात करने की अनुमति देता है। ऐसे में यह ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत के स्वदेशी निर्माण के लिए बड़ा खतरा है। इनमें से कुछ उपकरण तो ऐसे हैं जिन पर पीएलआई योजना के तहत भारत सरकार द्वारा सब्सिडी दी गई है। ऐसे में सरकार के दोनों कदम एक दूसरे विपरीत प्रतीत होते हैं। निवेशक निर्माण तकनीकों को तभी भारत ला सकेंगे जब पॉलिसी का वातावरण अनुकूल हो और नेशनल मेडिकल डिवाइसेज़ पॉलिसी 2023 के अनुरूप हो। इस अनुमति के चलते कई आधुनिक चिकित्सा उपकरणां के स्वदेशी निर्माण में रूकावट आ गई है बल्कि साथ ही मरीज़ की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लग गया है। मरीज़ का इलाज अनियमित चिकित्सा उपकरणों से करना, उनकी सुरक्षा के साथ बड़ा समझौता है। भारत का इस्तेमाल ई-वेस्ट को डम्प करने के लिए किया जा रहा है। वहीं विदेशी निर्माता भारत के स्वदेशी निर्माण को नुकसान पहुंचाते हुए अपनी बिक्री को दोगुना कर रहे हैं। पहले इन उपकरणों को पश्चिमी दुनिया में बेचा जाता है, और फिर से नवीकृत कर दूसरी बार भारत को बेच दिया जाता है। ऐसे में हमें भारत को चिकित्सा उपकरणों का डम्पिंग ग्राउण्ड बनने से बचाना होगा।’
डॉ सुधीर श्रीवास्तव, पूर्व चेयरमैन, मेडिकल डिवाइस कमेटी, PHDCCI ने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा, ‘भारत में नवीकृत चिकित्सा उपकरणों के आयात से देश की चिकित्सा तकनीकों की प्रगति में रूकावट आएगी। भारतीय निर्माता आर एण्ड डी तथा ‘मेक इन इंडिया’ दृष्टिकोण के अनुरूप आधुनिक हाई-टेक समाधानों में निवेश कर रहे हैं। ऐसे में नवीकृत चिकित्सा उपकरणों का आयात करना न सिर्फ मरीज़ों की देखभाल की गुणवत्ता के साथ समझौता है बल्कि स्वदेशी प्रगति में निवेश में बड़ी रूकावट भी है। विदेशी कंपनियां भारत से अपनी आर एण्ड डी की लागत वसूल रही हैं, वहीं दूसरी ओर हम खुद अपनी चिकित्सा की प्रगति में रूकावट पैदा कर रहे हैं। ऐसे में हमें अपनी नीतियों को ऐसा बनाना होगा कि ये उद्योग जगत की अखंडता के साथ समझौता किए बिना मरीज़ों के लिए सर्वश्रेष्ठ देखभाल को सुनिश्चित करें।
श्री अतुल शर्मा, सह-संस्थापक, इनवोल्युशन हेल्थकेयर प्रा. लिमिटेड ने कहा, ‘‘एशिया के सबसे बड़े कैथ लैब निर्माताओं में से एक होने के नाते, हमने ऐसे उपकरण विकसित किए हैं जो विश्वस्तरीय मानकों के अनुरूप हैं और लागत प्रभाविता एवं विश्वसनीयता के साथ देश के हर वर्ग के शहर की स्वास्थ्यसेवाओं सबंधी ज़रूरतों को पूरा करते हैं। यह गलत दावा ह कि नवीकृत उपकरण छोटे शहरों के लिए अधिक किफ़ायती हो सकते हैं, लेकिन इनके रखरखाव की लागत अधिक होती है और जीवनकल कम होता है। स्वास्थ्यसेवाओं में भारत का आत्मनिर्भर दृष्टिकोण स्थानीय इनोवेशन को बढ़ावा देता है। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि घरेलू निर्माण को प्राथमिकता दें और ऐसे अनावश्यक आयात पर रोक लगाएं, जो ओद्यौगिक विकास में रूकावट बन सकता है।’’
श्रीनिवास रेड्डी, सीनियर वाईस प्रे़ज़ीडेन्ट, एसएस इनोवेशन्स ने कहा, ‘‘भारत फार्मास्युटिकल उद्योग में ग्लोबल लीडर है और इसे दुनिया का वैक्सीन मैनुफैक्चरिंग हब भी माना जाता है, जो दुनिया भर में वैक्सीन की आपूर्ति में 60 फीसदी योगदान देता है। इसी तरह मेडटेक उद्योग में भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन में शामिल करने की अपार संभावनाएं हैं। हालांकि सरकार द्वारा नवीकृत डिवाइसेज़ के आयात संबंधी नीति देश की प्रगति और सफलता में बाधक बन सकती है।’’
मिस शालिनी शर्मा, असिस्टेन्ट सेक्रेटरी जनरल, पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री ने कहा, ‘‘ पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री स्वास्थ्यसेवाओं में आधुनिकीकरण की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता हैं हालांकि नवीकृत चिकित्सा उपकरणों का आयात स्वदेशी निर्माण के लिए बड़ा खतरा हो सकता है, गौरतलब है कि इनमें से ज़्यादातर निर्माता चैम्बर के सदस्य हैं। ऐसेमें हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि भारत में निर्मित उत्पादों के लिए निष्पक्ष माहौल का निर्माण करे ताकि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जा सके।
मिस चन्द्र्रा गंजू, ग्रुप सीईओ, ट्राईविट्रॉन हेल्थकेयर ने कहा, ‘‘नवीकृत चिकित्सा उपकरणों के आयात का भारत के हेल्थकेयर कसस्टम पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, यह भारत के आत्मनिर्भर दृष्टिकोण के लिए बड़ा खतरा है। इससे भारत के मेडिकल डिवाइस उद्योग के विकास में बाधा आएगी। यह दृष्टिकोण इनोवेशन तथा अनुसंधान एवं विकास पर फोकस कम करेगा, जो देश के हेल्थकेयर सिस्टम का आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है।’’
श्री विश्वनाथन संथनागोपालन, सीईओ एवं एमडी, सिकोइया हेल्थकेयर ने कहा, ‘‘अस्पताल और डायग्नॉस्टिक सेंटर मरीज़ों से वहीं शुल्क लेते हैं, फिर चाहे वे नए उपकरणों का इस्तेमाल करें या नवीकृत। यानि लागत में कटौती का फायदा मरीज़ों को नहीं मिलता। इसके बजाए उनका इलाज पुरानी टेक्नोलॉजी से किया जाता है। भारत का ऑटो उद्योग इसलिए विकसित हुआ क्योंकि कारों के आयात को कम करने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी गई, इससे स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहन मिला। इसी तरह का दृष्टिकोण मेडिकल डिवाइस उद्योग में भी अपनाना चाहिए। ताकि भारत में चिकित्सा उपकरणों के घरेलू निर्माण को बढ़ावा दिया जा सके और साथ ही देश में आधुनिक, भरोसेमंद स्वास्थ्य सेवा टेक्नोलॉजी के विकास को सुनिश्चित किया जा सके।’’
श्री आर.एस. कंवर, डायरेक्टर, एलंजर्स मेडिकल सिस्टम्स लिमिटेड ने कहा, ‘‘भारत में हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी के आध्ुनिकीकरण के लिए प्रतिबद्ध कंपनी के रूप में हमारा मानना है कि नवीकृत चिकित्सा उपकरणों का आयात मरीज़ों की सुरक्षा और स्वास्थ्यसेवाओं की गुणवत्ता के लिए बड़ा खतरा है। नवीकृत मशीनें अक्सर पुरानी टेक्नोलॉजी की होती है, वे भरोसेमंद परफोर्मेन्स नहीं देतीं, साथ ही आधुनिक मानकों का अनुपालन भी नहीं करती। जिससे जांच की सटीकता और उपचार के परिणामों में कमी आ सकती है। ऐसे में आउटडेटेड आयात पर निर्भर करने के बजाए हमें देश में निर्मित आधुनिक उपकरणों में निवेश करना चाहिए, जो विश्वस्तरीय मानकों के अनुरूप हो। ताकि भारतीय स्वास्थ्यसेवा प्रदाताओं को मरीज़ों की सर्वश्रेष्ठ देखभाल के लिए उचित उपकरण मिल सकें।’’
नवीकृत चिकित्सा उपकरणों का आयात बढ़ाना मरीज़ों की सुरक्षा तथा भारतीय निर्माताओं के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। ये इस्तेमाल की जा चुकी डिवाइसेज़ फेल हो सकती हैं और निदान एवं उपचार के गलत परिणाम दे सकती हैं। बहुत से मरीज़ यह नहीं जानते कि उनकी देखभाल के लिए जो मशीनरी काम में ली जा रही है, वह आउटडेटेड और संभवतया असुरक्षित है। इसके अलावा सुरक्षा जांच के बिना यह आयातित प्रोडक्ट्स मरीज़ों के सुरक्षित चिकित्सा देखभाल के अधिकार को बाधित करते हैं।
इन सभी मुद्दों को देखते हुए उद्योग जगत के लीडरों ने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया कि इन चुनौतियों पर जल्द से जल्द ध्यान दें तथा उन नवीकृत डिवाइसेज़ के आयात पर रोक लगाएं, जिन्हें भारत में निर्मित किया जाता है। उन्होंने कहा कि नीतियों को इस तरह से पेश किया जाए कि घरेलू निर्माण को बढ़ावा मिले और आयात पर निर्भरता कम हो। साथ ही भारत में इस्तेमाल की जाने वाली सभी मेडिकल डिवाइसेज़ की सुरक्षा और प्रभाविता पर निगरानी रखी जाए, ताकि मरीज़ों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा सके।
कार्यक्रम ने भारत के मेड टेक सेक्टर को सुरक्षित रखने तथा प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया। प्रवक्ताओं ने सरकार से आग्रह किया कि इस गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जाए तथा देश के मेडिकल डिवाइस निर्माताओं को हर ज़रूरी सहयोग दिया जाए।