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हजरत इमाम हुसैन की याद में या हुसैन या अली के साथ मस्जिदों में मजलिसें,शहादत का जिक्र हुआ हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक मेघनगर, पेटलावद, थांदला झाबुआ-का मोहर्रम।

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी – झाबुआ

माहे मोहर्रम के यौम-ए-आशूरा (दसवें दिन) आज बुधवार को रात भर शहर में रतजगा। इसी दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे।

उनकी याद में मोहर्रम ताजियो का कारवा निकाला।

मोलाना इमाम साहब ने अपने वाज़ में कहा – जिंदगी में सत्य का साथ नहीं छोड़ें। सत्य के साथ जिंदगी गुजारें और हमारे आस पास गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करें। क्योकी हजरत इमाम हसन हुसैन ने कभी किसी का साथ नहीं छोड़ा और हमेशा सच्चाई और सत्य के साथ चलते रहे।

सच्चाई पर चलने वालों के साथ परेशानियां आती हैं लेकिन इसमें हमेशा अल्लाह की मदद मिलती है।

उन्होंने कहा हजरत इमाम हुसैन के 6 माह के बेटे हजरत अली असगर भी इस जंग में शहीद हो गए। हजरत इमाम हसन हुसैन की शहादत हमें सच्चाई, इंसाफ और इंसानियत की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने यौमे आशुरा की विशेष फजीलत बताई और मोहर्रम की 9 व 10 तारीख को रोजे रखने का विशेष महत्व बताया गया।

  • यौमे आशुरा पर बुधवार को विशेष नमाज आदा की गई और दुआएं मांगी गई।
  • लंगरे हुसैन की जगहा जगहा दावते चली छबील (शरबत) दूध कोल्डड्रिंग का भी प्रोग्राम जगह-जगह चलता रहा।
  • कुरान खानी फातिहा एवं लंगरे हुसैन का आगाज शोहदा-ए-कर्बला की याद में महफ़िले सजाकर किया गया।

इसमें मुल्क की खुशहाली, ओर तरक्की की दुआ की गई झाबुआ, थांदला, राणापुर, पेलावद मे जलसा हुआ नवासा-ए- रसूल हजरत इमामे हुसैन की जिंदगी, कर्बला के मैदान में दीन हक और इंसाफ के लिए उनके शहीद होने की जानकारी दी।

100 साल पूर्व उनके पूर्वजों ने ताजिये के समक्ष मन्नत की थी।

पेटलावद के कलाबाई पति नारायण कहार ने बताया की करीब 100 साल पूर्व उनके पूर्वजों ने ताजिए के समक्ष मन्नत की थी और पूरी होने पर ताजिए का निर्माण किया।

मेघनगर मे अकबर चाचा कुरेशी, कालु बाबा बसोड, मोगी काकी बसोड,परिवार भी मन्नती ताजियों का निर्माण करता है।

यह सिलसिला वर्षों से लगातार जारी है। ये टोकरी, सुपड़े, बागरे, झाड़ू, बनाकर जीवन यापन करने वाले बसोड़ समाज भी ताजिया का निर्माण करता है। दिपक, एवं मुकेश, बसोड बताते हैं हमारे परिवार के साथ समाज में ताजियां निर्माण का यह पहला वर्ष नहीं है मान्यता के रूप में वर्षों से यह क्रम लगातार जारी है।Advertisements

पेटलावद ताजियों का निर्माण करते पांच पीढ़ियां गुजर गई।

पेटलावद नगर में सबसे पहला ताजिया बनाने वाले परिवार के धर्मा मुनिया बताते है कि ताजियों का निर्माण करते करते उनकी 5 पीढ़ियां गुजर गई। आज भी वे अपने पूर्वजों की इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। जब तब हमारी पीढ़ी आगे चलती रहेगी ताजएि बनाएं जाएंगे। हिंदू समाज द्वारा निर्मित ताजिए एवं मुस्लिम समाज के परिवारों द्वारा निर्मित ताजियों के साथ ही जुलुस चल समारोह में शामिल होकर करबला तक पहुंचते हैं। सबसे पहला ताजिया देवा भील परिवार ने बनाया था : हिंदू परिवारों के ताजियों के निर्माण का इतिहास 4 पीढ़ी से अधिक का है। सबसे पहला ताजिया नगर में आदिवासी समाज के देवा भील के परिवार से बनाया था। इसी कारण जुलुस चल समारोह में शामिल होने के लिए पहला ताजिया यहीं से उठ कर शामिल होता है।

  • मोहर्रम के दौरान इमाम हसन हुसैन की शहादत को मुस्लिम समाज याद कर रहा है।
  • झाबुआ जिले के तमाम शहर कस्बो मे ताजिये के आसपास बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटे।

ताजिये के आसपास जुलुस अखाड़ों में शामिल कलाकारो ने हैरत अंगेज एक से बढ़कर एक करतब दिखाये।

क्षेत्रीय विधायक विरसिंह भुरिया भी पहुंचे जुलूस में।

मुस्लिम समुदाय के अधिकांश लोग मोहर्रम की 09 /10 तारीख को रोजे भी रखते हैं। शहर के मुख्य मार्गो से निकाला जुलूस पहुचा कर्बला – कर्बला में ताजियो का विसर्जित किया जाएगा !

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