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सादर प्रकाशनार्थ – “सर्वधर्म संगोष्ठी में डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव एवं जिनधर्म रक्षक के सदस्य तत्त्वम् जैन ने किया जैनधर्म का प्रतिनिधि

महेश ढौंडियाल- दिल्ली

(कोई भी धर्म किसी भी धर्म के धार्मिक स्थल, गुरुओं, ग्रंथों, अनुयायियों को नुक़सान न पहुंचाए बल्कि एक-दूसरे का सम्मान करें – डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव)।

बहाई धर्म द्वारा दिल्ली के लोटस टेंपल में आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना एवं विचार संगोष्ठी में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय जैन प्रतिनिधि एवं “जिनधर्म रक्षक” की संस्थापिका डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव एवं नौ वर्षीय बाल सदस्य तत्त्वम् जैन ने जैनधर्म ने प्रतिनिधित्व किया।

ज्ञातव्य है कि आज से 40 वर्ष पूर्व दस महिलाओं ने बहाई धर्म के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी उनकी याद में सर्वधर्म प्रार्थना एवं ‘हमारी कहानी एक है” विषय पर विचार संंगोष्ठी का आयोजन लोटस टेंपल में किया गया था। इस आयोजन में जैन, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी, यहूदी, बहाईं, आदि धर्म के प्रतिनिधियों ने प्रार्थनाएं पढ़ी एवं विचार अभिव्यक्त किए।

डॉ. इन्दु जैन ने जैन प्रार्थना में णमोकार महामंत्र पढ़ा तथा वहां बताया कि सदियों से धर्मों पर अत्याचार होने की ‘हम सभी की कहानी एक है’। उन्होंने कहा कि आज भी भारत देश में जैन धर्म के प्राचीन तीर्थ स्थल गिरनार, बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि अनेक मंदिरों पर दूसरे धर्म के लोगों ने कब्ज़ा कर रखा है यहां तक की सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि गिरनार पर्वत पर जैनधर्म के अनुयायी तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के चरण चिह्नों की पूजा-अर्चना कर सकते हैं किन्तु गिरनार पर्वत पर अवैध रूप से मंदिर निर्माण करने वालों ने, वहां की सरकार पर दवाब बनाकर, जैनधर्म के अनुयायियों को तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के निर्वाण कल्याणक के दिन भी पूजा नहीं करने दी और तो और कुछ वर्षों से जब भी जैन-धर्म के लोग गिरनार पर्वत पर दर्शन करने जाते हैं वहां अतिक्रमण किए हुए लोग उन्हें धमकाते हैं एवं कई बार तो जैन धर्मावलंबियों पर अतिक्रमणकारियों द्वारा जानलेवा हमला भी किया गया है किन्तु जैनधर्म पर अत्याचार करने वाले लोगों के खिलाफ प्रशासन और सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती है। सिर्फ दो-तीन जैन मंदिर नहीं बल्कि अनेक ऐसे प्राचीन मंदिर हैं ज़हां तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती हैं किन्तु वहां भी दूसरे धर्म के लोगों ने मूर्ति के स्वरूप को बदलकर अपना मंदिर कहकर कब्ज़ा कर रखा है। जैनधर्म के गुरु-तीर्थों पर आए दिन परेशानियां आती रहती हैं तो जैसे किसी भी धर्म पर आंच आए तो जैन धर्म के लोग उस धर्म के लोगों का साथ देते हैं वैसे ही जैन तीर्थों पर हुए क़ब्ज़ों को हटाने के लिए सभी धर्मों के लोगों को जैन-धर्म का साथ देना चाहिए।

डॉ. इन्दु ने बताया कि जैन-धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जब राजा के रूप में थे तो उन्होंने अपनी दो पुत्रियों में ब्राह्मी को अक्षर कला सिखाई थी और वही अक्षर कला ब्राह्मी लिपि के नाम से प्रसिद्ध हुई, उससे ही सभी लिपियों का जन्म हुआ और सुन्दरी पुत्री को अंक विद्या सिखाई थी जिससे गणित का विकास हुआ और राजा ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर ही अपने देश का नाम भारत पड़ा। प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में भारत नाम का सबसे प्राचीन शिलालेख उदयगिरि-खण्डगिरि के हाथीगुंफा शिलालेख में पढ़ा जा सकता है। जैन-धर्म के अहिंसा परमो धर्म: एवं जियो और जीने दो के सिद्धांतों को बताते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म किसी भी धर्म के लोगों को और उनके धार्मिक स्थल,गुरुओं,ग्रंथों आदि को नुक़सान न पहुंचाएं और सभी धर्म एक दूसरे का सम्मान करें। उन्होंने जैनधर्म के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों के विषय में भी बताया एवं बहाई धर्म की दस वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि दी।

 

जिनधर्म रक्षक के सदस्य तत्त्वम् जैन ने भी बहुत सुंदर रूप में जैनधर्म के विचारों को अभिव्यक्त किया। तत्त्वम् ने कहा कि जैनधर्म एक विशुद्ध महान् आध्यात्मिक और पूर्ण: आस्तिक धर्म है। जैनधर्म के उपदेश आत्मकल्याण और विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जैनधर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के भाग्य का निर्माता है। व्यक्ति जन्म से नहीं, अपने कर्म से महान बनता है। आज विश्व शांति हेतु जैनधर्म के मूल सिद्धांत अहिंसा, सत्य,अचौर्य, अपरिग्रह, अनेकान्त, स्याद्वाद आदि सिद्धांतों की नितांत आवश्यकता है। इस युग में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने जन-जन को नई राह दिखाकर मोक्षमार्ग प्रशस्त किया है। पूरा विश्व इन सभी सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर आत्मकल्याण करे यही शुभभावना है। अपने वक्तव्य के बाद तत्त्वम् ने ‘तीर्थंकर महावीर ने कहा’ इस कविता के माध्यम से अनेकता में एकता,पंच अणुव्रत सिद्धांत के विषय में बताया। अपने वक्तव्य के अंत में तत्त्वम् ने कहा कि आज पूरे विश्व को भगवान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत आदि सिद्धांत को पूर्ण रूप से अपनाने की आवश्यकता है तभी विश्व में शांति, एकता और समानता के अधिकार की स्थापना संभव है।

देश-विदेश से आए दर्शकों ने छोटे बालक तत्त्वम् के वक्तव्य की बहुत प्रशंसा की। ज्ञातव्य है कि डॉ. इन्दु ‘जिनधर्म रक्षक’ के माध्यम से जैन बच्चों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय रूप से जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करने का प्रशिक्षण दे रहीं हैं ताकि जैन बच्चे बचपन से ही जैन प्रतिनिधि के रूप में जैन-धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकें और बड़े होकर भले ही वो किसी भी क्षेत्र में रहें किन्तु उनका मन जिनधर्म रक्षक बनकर सदैव जैनधर्म के लिए समर्पित रहे।

कार्यक्रम का संचालन कार्वेल त्रिपाठी ने किया। इस आयोजन में ए.के.मर्चेंट, नीलाक्षी, मौलाना शाहीन, आचार्य सतेन्द्र, फादर रॉबी, जसवीर , हेमचंद जैन , राकेश जैन आदि देश-विदेश से आए अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

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