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अंतिम आराधना सफल हुई – कमलाबाई पीचा का संथारा सिझा अंतिम दर्शन के बाद संघ ने निकाली डोल परिजनों ने दी मुखाग्नि

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी – झाबुआ

थांदला करोड़ो जन्म के संचित पुण्य व जीवन भर की तपस्या का फल होता है अंतिम समय में साधक का अंतिम मनोरथ का सफल हो जाना। जैन दर्शन में पंडित मरण (संथारा) युक्त मृत्यु को महोत्सव माना गया है

ऐसे साधक की मुक्ति का मार्ग अल्प भव का होता है। थांदला निवासी विमल कुमार पीचा की माताजी प्रतीक पीचा की दादी जी हितिशा, दीर्घ की परदादी धर्मनिष्ठ सुश्राविका श्रीमती कमला बाई भोगीलाल पीचा (90 वर्ष) को थांदला विराजित सरलमना साध्वी पुज्या श्री निखिलशीलाजी म. सा. द्वारा भवचरिम प्रत्याख्यान के कुछ ही समय बाद चारों आहार त्याग सहित संथारा के प्रत्याख्यान करवाए। उनका संथारा समाचार सुनकर श्वेताम्बर समाज में उनके निवास पर उनके अंतिम दर्शन का तांता लग गया।

हर कोई उनके अंतिम दर्शन कर उन्हें नवकार मंत्र, अरिहंत शरणम पवज्जामि, सिद्धे शरणम पवज्जामि, साधु शरणम पवज्जामि, केवली पणात्तम धम्मम शरणम पवज्जामि के द्वारा उनके शाश्वस्त सुखों की कामना करते हुए धर्म आराधना में सहयोगी बन रहा था। उनका संथारा 1:50 पर पूर्ण हुआ इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा डोल के रूप में निकाली गई जिसमें सकल संघ के वरिष्ठ जनों ने शाल माला पहनाकर उनके गुण अनुमोदन कर श्रद्धांजलि अर्पित की वही परिजनों ने मुखाग्नि दी।

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