Saturday, March 15, 2025

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डॉ0 शंकर दयाल सिंह व्याख्यानमाला का आयोजन

Mahesh Dhoundiyal - Delhi

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं सांसद स्व0 शंकर दयाल सिंह को सन्त साहित्यकार बताते हुए कहा कि वह सत्य के प्रति पूर्ण समर्पित थे और अपने लेखन में उन्होंने संबंधो को सत्य के आड़े आगे नहीं दिया। 1971 से 1977 तक वह लोकसभा के सदस्य रहे और सत्ता पक्ष में रहते हुए इमरजेंसी के दिनों के साक्षी बने। उसके बाद उन्होंने इमरजेसी क्या सच, क्या झूठ नामक पुस्तक लिखी, जिसकी शुरुआत में अपनी अन्तरात्मा की आवाज को व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा कि मेरी साफगोई से कतिपय विवाद उठ खड़े होंगे और मेरे मित्रों को कष्ट भी पहुंचेगा। लेकिन करूं क्या? राजनीतिक कलेवर के नीचे आत्मा में सच्चाई का जो दर्द छिपा हुआ है, वह रह-रहकर मुझे टीस देता है। ऐसा कोई सन्त साहित्यकार ही कर सकता है।


इसी तरह स्व0 शंकर दयाल सिंह से अपने संपर्क को याद करते हुए परमार्थ निकेतन, हरिद्वार के स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने बताया कि उनसे शंकर दयाल जी का परिचय विधिवेत्ता डॉ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी जी ने कराया था, जबकि वह यूनाइटेड किंगडम में भारत के राजदूत थे। तभी डा0 सिंघवी की प्रेरणा से हिन्दू धर्म विश्वकोष पर काम आरंभ हुआ जिसका दायित्व उनके ऊपर था। डॉ0 सिंघवी ने इस कार्य के लिए जो टीम गठित करने का परामर्श दिया, उसमें शंकर दयाल सिंह भी थे। इस तरह विश्वकोष की रचना में शंकर दयाल सिंह जी का सृजनात्मक योगदान भी रहा। शंकर दयाल सिंह के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए उन्होंने जोड़ा कि ट्रेन की यात्रा के दौरान ही ईश्वर ने उन्हें नई भूमिका दे दी और वह यायावर वहीं से महायात्रा पर निकल पड़ा।


दोनों महानुभाव डॉ0 शंकर दयाल सिंह व्याख्यान 2024 में सुप्रसिद्ध हिन्दीसेवी एवं सांसद शंकर दयाल सिंह को याद कर रहे थे। यह आयोजन शंकर संस्कृति प्रतिष्ठान के त्तावधान में 27 दिसम्बर 2024 को नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में किया गया था। इस वर्ष के व्याख्यान का विषय हमारी जरूरतें और चाहते था। मुख्य वक्ता के तौर पर विषय पर बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि जीवन संचय नहीं, वरन संबंध है। यदि हम संचय करने लगेंगे तब चाहतों की जकड़ में पड़ जाएंगे। हम संबंधों को जीकर ही जरूरतों को जान और समझ सकते हैं। उपराज्यपाल महोदय ने कहा कि संचय एक बीमारी की तरह है और अब पाश्चात्य देशों के लोग उससे निजात पाने का तरीका ढूंढ रहे हैं। विज्ञापन जगत हमारी चाहतों को हमारी जरूरतों के तौर पर दिखाने में लगे हैं और हम उस कुचक्र का शिकार होते जा रहे हैं। शुरु में आगतों का स्वागत करते हुए रंजन कुमार सिंह ने कहा कि वारिश के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति इस आयोजन और उससे जुड़े मूल्यों के प्रति लोगों की निष्ठा की प्रतीक है। डॉ0 रश्मि सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया जबकि कार्यक्रम का संचालन डॉ0 वर्तिका नन्दा ने किया। कार्यक्रम में डा0 संजय सिंह, संतोष भारतीय, वीरेन्द्र कुमार सिंह सहित अनेक पूर्व मंत्री, सांसद और साहित्य, संस्कृति, शिक्षा से जुड़े अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
26 नवंबर 1995 को उनके आकस्मिक निधन के बाद उनकी स्मृति में व्याख्यानमाला का आरंभ हुआ, जो 1995 से ही हर वर्ष उनके जन्मदिन (27 दिसंबर) पर अनवरत आयोजित होता रहा है। इससे पहले के आयोजनों में पूर्व उपराष्ट्रपति श्री कृष्णकान्त एवं श्री भैरव सिंह शेखावत, पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर एवं श्री इंद्र कुमार गुजराल, कला मर्मज्ञ डा0 कर्ण सिंह एवं डा0 लक्ष्मी मल्ल सिंघवी, लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटी, राज्यसभा उपसभापति डॉ0 नज्मा हेपतुल्ला एवं परिवंश, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित एवं उपमुख्यमंत्री श्री मनीष शिशोदिया, पूर्व एवं वर्तमान मंत्रीगण सर्वश्री राजनाथ सिंह, रामविलास पासवान, जनेश्वर मिश्र, राजीव प्रताप रूडी, तथा साहित्यकार डॉ0 नामवर सिंह, डॉ0 केदारनाथ सिंह, हिमांशु जोशी आदि मनीषी शामिल रहे हैं। शंकर संस्कृति प्रतिष्ठान का एक आयोजन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील के सान्निध्य में राष्ट्रपति भवन में भी आयोजित हो चुका है। गत वर्ष केरल के राज्यपाल माननीय आरिफ मोहम्मद खान ने सर्वधर्म सम्भाव और हमारा संविधान विषय पर विद्वतापूर्ण भाषण दिया था।


सांसद एवं हिन्दी सेवी डा0 शंकर दयाल सिंह जी साहित्य तथा राजनीति के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी थे। 1971 में वह 34 वर्ष की आयु में पहली बार लोकसभा में चुनकर आए और फिर 1985 से जीवनपर्यन्त राज्यसभा के सदस्य रहे। शंकर दयाल सिंह जी को उनकी लिखी चार दर्जन से अधिक पुस्तकों के लिए तो याद किया जाता ही है, गांधी और हिन्दी के प्रति उनकी निष्ठा के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष के तौर पर उनकी सेवाओं को भुला पाना कठिन है। इसके अलावा भी वह अनेक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं शैक्षिक संस्थाओ से जुड़े रहे थे। पटना में उन्होंने बीडी कॉलेज की स्थापना की जबकि मधुपुर में मधुस्थली आवासीय विद्यालय की स्थापना में भी उनका योददान रहा। देवघर स्थित बालिका विद्यापीठ से भी वह जुडे रहे। धर्म और दर्शन के प्रति उनकी गहरी आस्था थी। पटना के गाँधी मैदान में उनके संयोजकत्व में विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया

 

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