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12 सालो के बाद दिल्ली में हाकी मैच।

विजय कुमार की रिपोर्ट स्टेडियम से।

मीडिया को कार्ड नहीं, पहुंचने वालों के लिए जगह नहीं।

मीडिया के नाम पर अपने चहेतो के कार्ड बनाए, सुविधाओ के नाम पर खानापूर्ति

         नई दिल्ली,24 अक्टूबर। राजधानी दिल्ली में लगभग 12 सालों के बाद कोई हाकी की स्पर्धा आयोजित की गई। जिसमें भारत और जर्मनी की टीमों के बीच दो टेस्ट मैच खेलने निश्चित  हुए थे। मगर दिल्ली की जनता और मीडिया ने यह कभी भी नहीं सोचा होगा कि उनको मैच देखने के लिए बेहद खराब दौर से गुजरना पडेंगा। 

शौचालय में पानी नहीं, जाएं तो जाएं कहा - 

         दिल्ली के बीच स्थित हाकी के ध्यानचंद स्टेडियम पर 23 और 24 को यह मुकाबले खेले गए। जिसको देखने के लिए  प्रवेश तो प्री रखा गया। मगर जनता के लिए स्टेडियम के भीतर ना तो पीने का पानी, शौचालय में भी पानी व अन्य सुविधा नहीं थी, जबकि इस मैच को देखने वालो में अच्छी खासी संख्या महिला और बच्चों की थी। यहीं नहीं स्टेडियम मैं बैठने वाली सीटों को भी दर्शकों ने खूद ही साफ किया। हां यह जरूर था कि वीआइपी के लिए  जरूर खाने-पीने की व्यवस्था चकाचौंध वाली रही। क्योकि आम हाकी प्रेमी की तो कोई औकात ही नहीं है।

मीडिया के कार्ड नहीं बनाने के नये-नये बहानें

          जहां तक मीडिया की बात है तो उसको देखने वाली मीडिया एजेंसी की व्यवहार दूसरे दर्जे से भी खराब रहा। कई मीडिया वालो के कार्ड तो बनाए ही नहीं गए। जबकि मीडिया को देखने वाली एजेंसी के लोगा मीडियाकर्मियों को गलत जानकारी भी देते रहे। मीडियाकर्मियों ने जब मीडिया एजेंसी से पूछा तो किसी ने पहले आओ पहले पाओ की बात कही, तो दूसरी ने कहा कि लिमिटेड सीटे है। तीसरे से बात की तो कहा गया आप अपनी पेपर कटिंग देखाए, कि आपने हाकी कवर भी की है या नहीं। चौथे से बात करोें तो कहते है कि हाकी इंडिया से कार्ड ही कम मिले। इन सब बहानों के बावजूद मीडिया सुविधा के नाम पर केवल 20 से 30 लोगों के ही टेबल पर बैठने की सुविधा थी। जिसमें से अधिकतर पर फोटोग्राफरों का कब्जा था। ऐसे में जो रिपार्टर मैच कवर करने आए वह अपने लैपटाप को लेकर सीट पर ही बैठे दिखें, लैपटाप को चलाने के लिए बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी। मीडिया की सीटों पर मीडिया एजेंसी ने अपने और दूसरे लोगो को बिठाया हुआ था। यह देखने वाला भी कोई नहीं था। मीडिया एजेंसी ने यह भी कहा कि प्रत्येक संस्थान से एक रिपोर्टर का कार्ड बनाया गया है, जबकि कुछ संस्थानो के यहां से दो से चार लोगों के भी कार्ड बनाए गए। इसकी जांच हो तो सच्चाई का पता चल जाएगा। मीडिया के नाम पर 100 कार्ड बांटे गए।

वीआईपी गैलरी के पास भी सीटों से अधिक बांटे गए अधिकतरों ने खड़े होकर मैच देखा।

              इसी तरह वीआईपी गैलरी में भी पास ज्यादा संख्या में बांटे गए थे। जिससे गैलरी में बैठने वालों और खडे होने वालो की संख्या एक सी ही थी। यहीं इस गैलरी में पूर्व हाकी के लेजेंट खिलाडियों के लिए खाने पीने की व्यवस्था की गई थी। मगर आम लोगों के पहुंचने के कारण सारी व्यवस्था चरमरा गई और लिजेंट खिलाडी केवल मुंह ताकते  रहे। वीआइपी लोगों के लिए जरूर अलग से व्यवस्था था। यहीं नहीं अपने देष जर्मनी का मैच देखने वाले दर्शक भी काफी परेशान नजर आए।

            हालांकि एक अच्छा पक्ष यह था कि हाकी इंडिया के सचिव भोलानाथ जरूर दौडभाग कर व्यवस्था को संभालने का प्रयास कर रहे थे, मगर उनके ही साथी लोग व्यवस्था देखने की बजाए अपने-अपनों को खाने-पीने की मौज करते दिखाई दिए। इससे से बेहतर है कि राजधानी में इस तरह का कोई आयोजन ही ना हो कम से कम विदेश से आए मेहमानों के सामने यह दिन तो देखने को नहीं मिलते।

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